"यह सही है, पर तुम्हारी भी पैठ होगी, और ऐसी जो हमसे नहीं हो सकती।
सरकार की तरफ से उधर की बातें तुम्हीं से ली जाएँगी। तुम्हारे सीधे तअल्लुकात होंगे।
सिर्फ यह कि यह काम हमसे सुनकर तुम्हें करना है, फिर हम सरकार के आदमी से तुम्हारा हाल कहेंगे : वहाँ का कोई तुमसे पूछेगा। संबँध हो जाएगा।"
"इस तरह संबँध नहीं होता। वह कौन-सा काम है?" "एजाज से कुछ पूछना है।" "हाँ !"
"हमारा फायदा है। यह तुम्हारी समझ में आ जाए तो गुल खिल जाए। तुमसे तुम्हारे आदमी उठेंगे।
तुम्हें यहाँ से कहाँ तक बढ़ना है। जमींदार तुम्हारे-हमारे आदमी नहीं। हम मुसलमान पहले ऐसे थे जैसे अंग्रेज।
अब रैयत की रैयत हैं। माली हालत हमारी-तुम्हारी एक है। सरकार बंगाल के दो टुकड़े कर रही है।
इससे तुमको और हमको फायदा होगा यहाँ-जमींदार की जड़ हिलेगी, यानी रैयत को फायदा होगा। इस काम में सरकार की मदद करनी है।"
मुन्ना पर असर पड़ा। जिससे जाति-भर का भला हो वह काम सरकार ही कर सकती है।
जाति-प्रथा की सतायी मुन्ना का कलेजा डोला। जब्त किए खड़ी रही, चपल अपढ़ औरत।
फँसकर कहाँ तक बहती है, देखने की उमंग आई। पूछा, "एजाज से क्या पूछना है?"
"एजाज से आज-कल में मिलकर पूछ लो, क्या हालात हैं? लौटकर जवाब दे जाओ।"
मुन्ना सहमत हुई। खजांची मन में सोचता हुआ बढ़ा कि रुपए रानी को दिए गए या नहीं।